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मुस्लिम समाज का बड़ा हिस्सा इस्लामी पारिवारिक कानून से अनजान

वाराणसी, 22 अप्रैल (हि.स.)। मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा इस्लामी पारिवारिक कानून से अनजान है। समुदाय में बहुत लोग इन कानूनों को मूल रूप से भी पालन नही करते। संवैधानिक न्यायालय भी अक्सर मुस्लिम पर्सनल ला से सम्बन्धित विवाद पर इस्लामी शरीयत के वसूलों के विपरित निर्णय लेते हैं।

शनिवार को यह जानकारी पराड़कर भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द नई दिल्ली के सचिव मौलाना मतीउल्लाह फलाही और वाराणसी अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद साबिर फलाही ने संयुक्त रूप से दी। उन्होंने बताया कि न्यायालय का निर्णय बाद में कानूनी नजीर बन जाता है। इसलिए विधायी संस्थाएं भी इसमें हस्तक्षेप करती हैं। मीडिया भी मुस्लिम पर्सनल ला की एक तरफा छवि पेश कर रही है। इसकी वजह है इस्लाम की वास्तविक शिक्षा के बारे में कम जानकारी होना। इन्ही बिन्दुओं को ध्यान में रख उनकी संस्था 23 अप्रैल से सात मई तक मुस्लिम पर्सनल ला जागरूकता अभियान चलायेगी।

तीन तलाक से उठ रहे बवंडर पर कहा कि अंग्रेजो के शासन काल में मुसलमानों की मांग पर 1937 में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट पास किया गया। जिसके अनुसार निकाह, तलाक, खुला, जिहार, फस्ख निकाह (निकाह को खत्म करना), परवरिश का हक, विलादत, मीरास, वसीयत, हिबा और शुफआ से सम्बन्धित मामलों में अगर दोनो पक्ष मुसलमान है तो शरीयते मुहम्मदी (सल्ल.)के अनुसार उनका फैसला होगा, चाहे उनकी रीति रिवाज और परम्परा कुछ हो। मतलब कि इस्लामी शरीअत के कानून को आत रीति रिवाजों पर प्राथमिकता होगी। भारतीय संविधान के अध्याय (मौलिक अधिकार) में अकीदा, धर्म और अन्तरआत्मा की आजादी मौलिक अधिकार है।

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धर्म की स्वतंत्रता हमें इस बात की आजादी देती है कि हम अपने शरीअत के कानून का पालन कर सकते हैं। कहा कि अल्लाह द्वारा प्रदत्त कानूनों में संशोधन का कोई अधिकार नही है। इस लिए संस्था जागरूकता अभियान चलाने जा रही है। कहा कि मुस्लिम समुदाय को शिक्षित करने की आवश्यकता है।

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