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यूपी की हार भुलाकर अब गुजरात की तैयारियों में जुटीं मायावती

लखनऊ, 28 अप्रैल (हि.स.)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती अब दूसरे राज्यों में पार्टी की सियासी जमीन मजबूत करने में जुट गयी हैं। इसके तहत वह स्थानीय नेताओं से बातचीत कर रही हैं और नई रणनीति बना रही हैं। खासतौर से चुनाव वाले राज्यों में उनका फोकस है।

इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन में आवश्यक फेरबदल करने के बाद शुक्रवार से मायावती ने दूसरे राज्यों की समीक्षा बैठक प्रारम्भ की। इसके तहत उन्होंने गुजरात में पार्टी संगठन की गतिविधियों व पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के लिए वहां के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ आज बैठक कर गहन समीक्षा की।

गुजरात में इस वर्ष विधानसभा के आम चुनाव होने हैं, इसलिए इसको भी ध्यान में रखकर मायावती ने पार्टी के लोगों को विशेष दिशा-निर्देंश दिया। पश्चिमी भारत के राज्य गुजरात में वैसे तो दलितों की जनसंख्या काफी कम है तथा उनकी राजनीतिक शक्ति ज्यादा नहीं है, लेकिन मायावती का मानना है कि ऊना बर्बर दलित उत्पीड़न काण्ड के बाद गुजरात के दलितों में अपने आत्म-सम्मान व स्वाभिमान के साथ-साथ जो राजनीतिक चेतना जगी है। उससे वहां के दलितों, आदिवासियों व अन्य पिछड़ों का जीवन स्तर बदल कर बेहतर हो सकता है।

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पार्टी पदाधिकारियों से गुजरात के राजनीतिक हालात का फीडबैक लेने के बाद मायावती ने कहा कि जिस प्रकार से मण्डल आयोग की सिफारिशों के तहत् शिक्षा व सरकारी नौकरी के क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था करने के लिए पिछड़े वर्ग की लड़ाई लड़ी गई, उसी प्रकार आदिवासी समाज की लड़ाई को भी अपनी लड़ाई समझकर संघर्ष करना होगा। उन्होंने कहा कि तभी उनकी उपेक्षा व शोषण पर विराम लगाया जा सकता है।

बसपा अध्यक्ष ने कहा कि गुजरात राज्य में खासकर दलितों व आदिवासी समाज व सर्वसमाज के अन्य गरीबों की हालत काफी दयनीय है। वहां भी बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों का बोलबाला है तथा सामाजिक ताना-बाना काफी बिगड़ा हुआ व विचलित करने वाला है। उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों में से खासकर मुस्लिम समाज के लोगों के साथ जबर्दस्त भेदभाव है तथा उन्हें इन्साफ किसी स्तर पर नहीं मिल पा रहा है।

मायावती ने कहा कि गुजरात के तमाम मजलूम आपसी भाईचारे के आधार पर एकजुटता पैदा करके विधानसभा के इसी वर्ष होने वाले चुनाव को लड़ते हैं तो भाजपा के रूप में वहां स्थापित जातिवादी व साम्प्रदायिक पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।

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