Home Sliderखबरेविशेष खबर

कोरोना के बीच टिड्डी संकट

– प्रमोद भार्गव

कोरोना संकट से जूझ रहे देश पर टिड्डियों ने हमला बोलकर हजारों हेक्टेयर खेतों में खड़ी फसल को चट कर दिया है। बुद्धि से तेज इस मामूली पतंगा-कीट ने किसान के प्रतिरोध से बचने के लिए अपने समूहों को छोटे-छोटे दलों में बांट लेने की चतुराई बरती है। जिससे कीटनाशक रासायनिक हमले से पूरी बिरादरी नष्ट न हो। टिड्डियों ने मध्य प्रदेश में महाराष्ट्र से प्रवेश कर समूचे मालवा और उत्तरी मध्य प्रदेश को अपने कब्जे में ले लिया था। फिर यह दल झांसी होता हुआ उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में प्रवेश कर गया। अब टिड्डियों ने महाराष्ट्र के नागपुर की ओर से प्रवेश कर विंध्य क्षेत्र, नर्मदांचल के खेतों और छत्तीसगढ़ में डेरा डाल हरियाली को चुगना शुरू कर दिया है। ये मिर्ची, बैंगन, कद्दू, पेठा, मक्का और मटर को नुकसान पहुंचाया है। भारत के जिन राज्यों में टिड्डी फसलों व वनस्पतियों को चट कर रहे हैं, उन राज्यों को तो बड़ी आर्थिक हानि उठानी ही होगी, देश को भी विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने में बाधा आएगी।

ईरान और पाकिस्तान से होते हुए टिड्डी दल राजस्थान के रास्ते से महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में आए और उत्तर प्रदेश होते हुए अन्य राज्यों में प्रवेश कर गए। रेगिस्तानी इलाके से आने वाले टिड्डियों को सबसे ज्यादा हानिकारक माना जाता है। यह अपने रास्ते की पूरी हरियाली चट कर जाता है। अंटार्कटिका को छोड़ प्रत्येक महाद्वीप पर टिड्डियां पाई जाती है। दुनिया में इसकी कुल 11 हजार प्रजातियां हैं, जिनमें से भारत में चार पाई जाती हैं। टिड्डियों का एक छोटा समूह ही एकदिन में तकरीबन दस हाथी, 25 ऊंट या दो हजार लोगों के बराबर का भोजन खा जाता है। यदि यह दल बड़ा है तो एक दिन में 25 हजार लोगों के खाने के बराबर भोजन खा जाता है।

टिड्डी की लंबाई दो इंच से 5 इंच के बीच होती है। इसका वजन महज 2 से 5 ग्राम तक होता है। इतनी ही मात्रा में यह भोजन करता है। इसके सुनने के अंग अर्थात् कान, सिर पर होने की बजाय पेट पर होते हैं। टिड्डी छोटे सीगों वाले प्रवासी कीट होते हैं। इसके दो एंटीना, छह पैर और दो पंख होते हैं। नर टिड्डा को अंग्रेजी में ग्रास हॉपर और मादा टिड्डी को लोकस्ट कहते हैं। इनका आकार घोड़े के मुंह जैसा होता है। इसलिए इसे हिंदी में घास-घोड़ा भी कहा जाता है। यह नाम इसके हरे रंग का होने के कारण भी पड़ा है। इनका जीवनकाल केवल दस हफ्तों से लेकर चार महीने तक होता है। टिड्डी एकबार में करीब 25 सेंटीमीटर ऊंचाई और लगभग एक मीटर लंबी छलांग लगा सकती है। ये हवा के रुख के अनुसार अपने चलने की दिशा तय करते हैं। ये एकदिन में 150 से 250 किमी तक का सफर आसानी से तय कर लेते हैं। रात्रि विश्राम के लिए पेड़ों के समूहों पर बैठ जाते हैं। आराम करने का ठिकाना ये शाम 7 से रात्रि 9 बजे के बीच बना लेते हैं। टिड्डी दल जहां ठिकाना बनाते है, वहां भी अंडे देते हैं। ऐसे में टिड्डियों की संख्या विश्राम स्थलों पर एकाएक बढ़ जाती है। यदि रात्रि में तीन बजे से लेकर सुबह 7 बजे तक इनपर कीटनाशी दवाओं का छिड़काव किया जाए तो इन्हें बड़ी संख्या में मारना आसान होता है।

दुनिया में तीन करोड़ वर्ग किलोमीटर के रेगिस्तानी क्षेत्र में टिड्डियों का जमावड़ा बना रहता है। 64 देशों के इलाकों में टिड्डी दल फैले रहते हैं। टिड्डी न तो अपना घोंसला बनाते हैं और न ही पेड़ों के खोलों में रहते है। ये निरंतर आहार की तलाश में प्रवासी कीट की तरह इधर-उधर भटकते रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत पर टिड्डियों का हुआ यह हमला 27 सालों में हुए हमलों में सबसे बड़ा है। हालांकि 1812 से भारत टिड्डियों के हमले झेल रहा है। अरबों की संख्या में टिड्डी दल इसबार देखे गए हैं। अफ्रीका में भी टिड्डियों ने भी बड़ा हमला किया है। टिड्डी प्रकोप एक प्राकृतिक आपदा है। जिन रेगिस्तानी इलाकों में यह रहते हैं, वहां जब वायुमंडल में अधिक गर्मी हो जाती है तो ये चमत्कारी रूप से ऊर्जा प्राप्त कर हजारों किमी की उड़ान भरने में सक्षम हो जाते हैं। चूंकि ये लाखों-करोड़ों की संख्या में एकसाथ आसमान में उड़ान भरते हैं इसलिए जहां से भी गुजरते हैं, वहां हरियाली पर भयंकर विनाश के निशान छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। टिड्डी दलों का आगमन अशुभ माना जाता है। क्योंकि ये फसलों का भोजन कर मानव समुदायों को भूखा रहने के लिए विवश कर देते हैं। इसीलिए इनको अकाल का पर्याय माना गया है। भारत में 1926 से लेकर 1931 के बीच टिड्डियों के हमले से लगभग 10 करोड़ मूल्य की फसल का नुकसान हुआ था, जो 100 साल में हुए टिड्डियों द्वारा किए हमलों में सबसे बड़ा नुकसान माना जाता है। 1940 से 1946 तक और फिर 1949 से 1955 के बीच भी टिड्डी भारत पर हमला बोलते रहे हैं। इन हमलों में दो-दो करोड़ रुपए के मूल्य की फसलों का नुकसान हुआ है। 1959 से लेकर 1962 के बीच टिड्डियों ने 50 लाख रुपए की फसल तबाह कर दी थी। 1978, 1993, 1998, 2002, 2005, 2007 और 2010 में भी टिड्डियों ने हमले बोले थे लेकिन ये 10 लाख रुपए से कम मूल्य की फसलें ही चौपट कर पाए थे।

1875 में अमेरिका में एक बड़े टिड्डी दल ने हमला किया था। यह हमला पांच लाख दस हजार वर्ग किमी में फैला था। भारत के जिन राज्यों में टिड्डी फसलों व वनस्पतियों को चट कर रहे हैं, उन राज्यों को बड़ी आर्थिक हानि तो उठानी ही होगी, देश को भी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में यह हमला रोड़ा बनेगा। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि एजेंसी की शीर्ष अधिकारी कीथ क्रेसमैन ने चेतावनी दी है कि भारत-पाकिस्तान सीमा से जुड़े राजस्थान के भू-भाग पर मध्य जून में टिड्डी दल, दुनिया की सबसे बड़ी मात्रा में प्रजनन कर अंडे देंगे। इनसे करीब आठ हजार करोड़ टिड्डी पैदा होंगे। चूंकि ये मरुस्थलीय टिड्डी होंगे इसलिए फसलों के लिए ज्यादा विनाशकारी साबित होंगे। दरअसल, इस क्षेत्र में ऐसी नमी रहती है जो टिड्डियों के आवास और प्रजनन के अनुकूल होती है। मानसून पूर्व बारिश से होने वाली बुवाई से जो बीज अंकुरित होंगे, उसे खाते हुए ये अंडों को जन्म देंगी। इसलिए भारत सरकार की कोशिश है कि इन्हें प्रजनन की स्थिति निर्मित होने से पहले ही मार दिया जाए।

इन्हें भगाने के लिए परंपरागत तरीकों से लेकर आधुनिकतम तकनीकी उपाय बरते जा रहे हैं। एक तरफ किसान थाली, ढोल, मंजीरे, टीन के डिब्बे बजाकर भगा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सक्षम किसान ट्रैक्टर से एयर कंप्रेशर में रासायनिक द्रव्य भरकर छिड़काव कर रहे हैं। ट्रैक्टर का साइलेंसर निकालकर भी कर्कश ध्वनि निकालकर इन्हें भगाने में किसान लगे हैं। फायर बिग्रेड से पानी का छिड़काव करके भी फसल बचाने के उपाय किए जा रहे हैं। सिंचाई पंपों से बौछार करके भी इनसे छुटकारा पाने में किसान लगे हैं। यही नहीं केंद्र सरकार ने टिड्डी दलों का दायरा लगातार विस्तृत होता देख प्रभावित राज्यों में हेलिकॉप्टर और ड्रॉन से कीटनाशकों के छिड़काव की तैयारी कर ली है। खाद्य एवं कृषि संगठन; एफएओ इन तैयारियों को गति दे रहा है। फिलहाल टिड्डी प्रभावित राज्यों को 11 क्षेत्रों में बांटा गया है। सबसे ज्यादा प्रभावित पांच राज्य महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओड़ीसा में 200 कृषि वैज्ञानिक शिविर लगाकर टिड्डी दलों की निगरानी करेंगे। उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ भी टिड्डियों के प्रभाव में हैं। ब्रिटेन से इस छिड़काव की मशीनें आयात की गई हैं। जिनके जल्दी आने की उम्मीद है। यहां यह तथ्य समझ से परे है कि टिड्डियों का हमला हजारों, लाखों की संख्या में खेतों अथवा पेड़ों पर होता है और वे कुछ घंटों में ही सैंकड़ों-हजारों हेक्टेयर में खड़ी फसल व पेड़ों को नष्ट कर देते हैं। ऐसे में ये उपाय आग लगने के बाद कुआं खोदने की मशक्कत भर साबित होंगे। जबकि टिड्डियों के हमले की आशंका हर साल बनी रहती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Tags

Related Articles

Back to top button
Close