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कोरोना काल में सीएम शिवराज के सामने मंत्रिमंडल गठन की भी चुनौती

– सतीश एलिया

देश जिस अभूतपूर्व वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते तालाबंदी में कैद है, इसके इलाज के उपायों और बचाव के दिन-रात प्रयासों के बावजूद वायरस संक्रमितों और मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में इस वायरस से होने वाली मौतों की तादाद रोजाना बढ़ रही है और इसमें चिकित्सकों से लेकर पुलिसकर्मी तक शामिल हैं। इस बीच कोरोना संकटकाल में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के तख्तापलट से जन्मी भाजपा की शिवराज सरकार ने एक नया रिकार्ड बना लिया है। चौथी दफा मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान मप्र के इतिहास में अबतक के सर्वाधिक अवधि वाले मुख्यमंत्री इस चौथी पारी की शुरूआत में ही बन चुके हैं। इसके अलावा वे सर्वाधिक दिन तक बिना मंत्रिमंडल के मुख्यमंत्री रहने के मामले में भी नया कीर्तिमान बना चुके हैं। उनसे पहले यह रिकार्ड कर्नाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा के नाम था, वे 24 दिन बिना मंत्रियों के रहे थे और शिवराज 27 दिन से अकेले ही मप्र सरकार चला रहे हैं। इसमें यह भी है कि येदियुरप्पा के सामने कोरोना महामारी से निपटने जैसा अभूतपूर्व संकट नहीं था।

इसलिए नहीं बन पा रहा मंत्रिमंडल

जिन हालात में कमलनाथ सरकार का पतन हुआ और शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, वे सियासी लिहाज से भी अभूतपूर्व थे। कांग्रेस के 22 विधायकों की पार्टी से बगावत और उससे पहले उनके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा प्रवेश के घटनाक्रम में इन बागी विधायकों के इस्तीफे मंजूर किए जाने और विधानसभा में बहुमत साबित करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक के कई एपिसोड शामिल हैँ। भाजपा ने 13 साल मुख्यमंत्री रह चुके चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करके इस पद को लेकर भाजपा में ही चल रही अंदरूनी खींचतान को तो थाम लिया लेकिन मंत्री बनाने को लेकर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस से भाजपा में आए सिंधिया समर्थक पूर्व मंत्रियों की महात्वाकांक्षा को रोक पाना मुश्किल था। कोरोना संकट के लिहाज में मंत्रिमंडल गठन टाल दिया गया। लेकिन कोरोना संकट से निपटने में अकेले जूझते मुख्यमंत्री शिवराज और इंदौर-भोपाल में कोरोना के हालात बिगड़ने पर पूर्व सीएम कमलनाथ से लेकर समूची कांग्रेस ने मंत्रिमंडल गठन को लेकर सियासत शुरू कर दी, मकसद था पूर्व मंत्रियों की नई बगावत की सुगबुगाहट पैदा करना। भाजपा कांग्रेस की इस चाल में कोरोना संकटकाल में उलझना नहीं चाहती थी। इस वजह से करीब साढ़े तीन हफ्ते बीत गए लेकिन अब भाजपा की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण किरदार निभाने वाले भाजपा के वरिष्ठ विधायकों और सिंधिया के साथ बगावती झंडा लेकर कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व मंत्रियों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। ये अब विधायक भी नहीं हैं लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने इन नवागत भाजपाइयों में से कुछ को मंत्रिमंडल में शामिल करने और अपने पूर्व के विश्वस्त साथियों को भी समाहित करने की चुनौती है।

20 अप्रैल के इंतजार के पीछे ये है वजह

14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश को संबोधन में लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ाने और इसमें 20 अप्रैल को कुछ रियायतें देने की घोषणा के मद्देनजर एकबार फिर भाजपा में मंत्रिमंडल गठन की कवायद तेज हुई। इसी बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात ने इस अवश्यंभावी मंत्रिमंडल गठन में सिंधिया गुट की बेसब्री को रेखांकित किया। इधर हर शुभ कार्य में पचांग देखने के इतिहास वाली भाजपा में पंचक समाप्त होने का इंतजार किया जा रहा है। लॉकडाउन में रियायत काल शुरू होते ही पंचक भी समाप्त होने वाले हैं। संभावना है कि सोमवार से शुरू हो रहे हफ्ते में मंत्रिमंडल गठन हो सकता है।

क्या उप मुख्यमंत्री बनाएंगे शिवराज

कांग्रेस की तरह जाहिर तौर पर चिन्हित गुटबाजी न होते हुए भी भाजपा में हमेशा दो गुट बने रहने का मप्र में इतिहास है। कभी पटवा-सारंग गुट हुआ करता तो उमा भारती-कैलाश जोशी गुट भी हाेता था। मप्र में जनता सरकार में मुख्यमंत्री रहे वीरेंद्र कुमार सखलेचा का राजनीतिक पराभव और वर्तमान में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मंत्री विक्रम वर्मा का सियासी पराभव भी भाजपा की गुटबाजी का ही परिणाम रहा है। ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं फिर भी भाजपा में गुटबाजी उतनी मुखर और प्रभावी नहीं रही जितनी कांग्रेस में रहती आई है। लेकिन सियासत में मूलत: कांग्रेसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने और उनके साथ 22 विधायकों का भी विधायकी त्यागकर भाजपा मेंं आना, जिनमें आधा दर्जन पूर्व मंत्री भी शामिल हैं, जो दशकों से कांग्रेस में थे, भाजपा में वर्तमान में स्पष्ट रूप से सिंधिया गुट के रूप में सामने है। माना यह जा रहा है कि सिंधिया कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद जिस बात पर अड़े थे और जिसकी पूर्ति नहीं होने पर अंतत: 14 महीने बाद कमलनाथ सरकार का पतन हो गया, वे भाजपा में भी वही मांग पूरी करवाने के लिए जिद कर रहे हैं।

कमलनाथ खुद सिंधिया को तो उपमुख्यमंत्री बनाने पर राजी थे लेकिन वे उनके किसी समर्थक विधायक को डिप्टी सीएम बनाने पर तैयार नहीं हुए और कांग्रेस ने कमलनाथ की मान ली थी, सिंधिया डिप्टी सीएम बनने राजी नहीं हुए तो उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी नहीं बनाया गया। इसे उन्होंने अपमान की तरह लिया और करीब सवा साल बर्दाश्त भी किया। तो क्या भाजपा सिंधिया के किसी समर्थक पूर्व मंत्री को शिवराज का डिप्टी सीएम बनाने पर राजी होगी? यही वो सवाल है जिसके जवाब में मंत्रिमंडल का गठन अटका हुआ है। अगर शिवराज को यह मानने के लिए राजी होना पड़ा तो भाजपा एक और डिप्टी सीएम बनाने पर विचार कर सकती है लेकिन क्या शिवराज इस पर राजी होंगे? अगर हो भी गए थे तो वह कौन होगा? इसे लेकर भी पार्टी के अंत:पुर से लेकर कोरोना संकट से सन्नाटे में डूबे सियासी गलियारों में राजनीतिक प्रेक्षक कयासबाजी के कंकड़ फेंककर हलचल पैदा कर रहे हैं। कमलनाथ सरकार के वक्त नेता प्रतिपक्ष रहे भाजपा के वरिष्ठतम विधायक पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, शिवराज सरकार में हमेशा संकटमोचक की भूमिका में रहे और भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक, कमलनाथ सरकार के तख्ता पलट के प्रमुख सूत्रधार नरोत्तम मिश्रा के नाम इस दूसरे डिप्टी सीएम की संभावना में लिए जा रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो शिवराज के दो संभावित डिप्टी में यह दूसरा नाम ही पहली पायदान पर होगा। सिंधिया गुट से चर्चा में वही नाम है जो कमलनाथ को रास नहीं आया था, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट। सिलावट सिंधिया के खास सिपहसालार तो हैं ही भाजपा के अखंड 15 साल के दौरान भी विधायक रहे और महज सवा साल मंत्री रह सके।

देखना यह है कि मंत्रिमंडल के गठन में क्या फॉर्मूला काम करता है, सिंधिया के समर्थक छह पूर्व मंत्री जो अब विधायक तक नहीं हैं, उनमें से कितने मंत्री शामिल होंगे? डिप्टी सीएम पद मिला तो कितने? नहीं मिला तो कितने? अधिकतम तीस मंत्री बनने की गुंजाइश के बावजूद कोरोना काल में फिलहाल कितने मंत्री होंगे और बाद में विस्तार की कितनी गुंजाइश रखी जाएगी। अबतक की शिवराज सिंह चौहान की कार्यशैली और संतुलन की उनकी कोशिश से ऐसा लगता है कि वे अपने लिए सुविधाजनक फैसला करवाने में सफल होंगे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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