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बीसीजी वैक्सीनः संकट का सहारा

– डॉ. नाज़ परवीन

डर और खौफ से दुनिया सहमी हुई है। 21वीं सदी की महामारी कोरोना ने विश्व की विकास की रफ़तार पर अचानक ब्रेक लगा दिया है। संसार का प्रत्येक व्यक्ति डरा हुआ है, अपने-अपनों के लिए। करोना से हमें डरना नहीं मिलकर जीतना है। कोरोना का खतरा दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है। दुनिया भर की सरकारें पूरी कोशिशों में लगी हैं कि इस महामारी को जल्द से जल्द रोक दिया जाए। 2013 में रसायन शास्त्र में नोबेल पुरस्कार पाने वाले माइकल लेपिट ने उम्मीद जगायी है कि जल्द ही कोरोना वायरस का खतरा कम हो जाएगा। विश्व संकट की इस घड़ी में दुनिया भर के वैज्ञानिक युद्धस्तर पर कोरोना वायरस की दवा खोजने में लगे हुए हैं। बडे़-बड़े समृद्ध देशों में खामोशी का मातम पसरा है। विश्व का चौधरी कहा जाने वाला अमेरिका भी बेबस और बेहाल है। विश्व की स्वास्थ्य सुविधाओं की सूची में नं. 2 पर काबिज इटली तबाही की कगार पर खड़ा है। मौजूदा दौर के हालात में एशिया की चिन्ता बढ़ना लाजिमी है, जब विकसित देशों के इस महामारी ने हाथ-पांव फुला दिये हो, तब भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश के लिए यह गहरी चिन्ता का प्रश्न है। जिसके लिए भारत सरकार ने मुस्तैदी से काम करना भी चालू कर दिया। दुनिया के विकासशील देशों के सामने मौत और डर के साये के बीच एक रोशनी की किरण बी.सी.जी. वैक्सीन नज़र आई है, जो यकीनन इन दशों में सुरक्षा कवच के रूप में काम कर सकती है। अमेरिका के न्यूयॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी के अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि बी.सी.जी. वैक्सीन कोविड-19 की महामारी में कारगर साबित हो सकती है। यदि यह अध्ययन सटीक बैठा तो दुनिया भर के उन देशों के लिए जहां यह वैक्सीन पहले से दी जा रही थी, संकट का बड़ा सहारा साबित होगा।

अमेरिका के वैज्ञानिकों के इस अध्ययन से उम्मीद की एक किरण जागती है। भारत दुनिया के कई देशों का प्रेरणास्रोत बनकर उभरा है। भारत में कोविड-19 की रफ़्तार अन्य विकसित देशों की अपेक्षा धीमी है, इसका एक कारण बी.सी.जी. का टीका भी माना जा रहा है, जिसे भारत में हर नवजात को दिया जाता है। आजादी के पहले से ही इसका बंदोबस्त किया जा रहा है। बी.सी.जी. मेडिकल की दुनिया का 100 साल पुराना अविष्कार है, जिसे टी.बी. महामारी को दूर करने के लिए तैयार किया गया था। इस टीके का प्रयोग पहली बार 1921 में पेरिस में एक बच्चे पर किया गया था। भारत में यह अगस्त 1948 में पहली बार पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया गया था। 1955-56 तक यह बड़े पैमाने में भारत में उपयोग किया जाने लगा, आगे जाकर 1978 में टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई, तब से लेकर अबतक भारत में टी.बी. के रोकथाम के लिए इसका यूनिवर्सल टीकाकरण के नाम से उपयोग होने लगा। इस टीकाकरण का उद्देश्य भारत में बच्चों को जानलेवा महामारी से बचाना है। यह वैक्सीन बीमारी से लड़ने की ताकत देती है और उनकी इम्यून सिस्टम मजबूत करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस वैक्सीन में इम्यूनिटी लेवल बढ़ाने की जरूरत से ज्यादा क्षमता है, जिसके कारण यह अन्य कई तरह के रोगों से लड़ने में भी सहायक है।

अभीतक के आंकडों से पता चलता है कि जिन देशों में यह वैक्सीन पहले से दी जा रही थी, उनमें अन्य देशों के मुकाबले 6 गुना कम लोग मारे गये हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन से पता चलता है कि यूनिवर्सल बी.सी.जी. पाॅलिसी वाले देशों में प्रति 10 लाख लोगों पर 0.78 मौते हुई हैं, वहीं गैर बी.सी.जी. पाॅलिसी वाले देशों में प्रति दस लाख लोगों पर 16.39 मौते हुई हैं। भारत में यह टीकाकरण आजादी से अबतक लगातार जारी है इसीलिए ऐसा माना जा रहा है कि भारत जैसे विस्तृत आबादी वाले देश में इसका असर अन्य देशों की अपेक्षा धीमा है। ब्रिटेन में 1953 से 2005 तक बड़ी संख्या में 10 से 14 साल के स्कूली बच्चों का टीकाकरण किया गया लेकिन जैसे ही टी.बी. का संक्रमण कम होने लगा यहां इस टीके को लगाना बन्द कर दिया गया। माना जा रहा है कि कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण भारी तादाद में ब्रिटेन के लोग इस संक्रमण के शिकार हुए है। वहीं जापान 1947 से इस टीकाकरण पर अभियान चला रहा है। मौजूदा दौर में स्पेन, फ्रांस, अमेरिका, इटली, नीदरलैण्ड में यूनिवर्सल बी.सी.जी. पाॅलिसी नहीं है, ऐसा माना जा रहा है कि यही कारण है कि यहां इस वायरस का रौद्र रूप देखने को मिला है। टी.बी. के इस टीके का वायरस से सम्बन्ध ढूंढने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया और नीदरलैण्ड जैसे देशों ने शोध प्रारम्भ कर दिया है। हालांकि किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए दुनिया को अभी विस्तृत शोध की आवश्यकता है।

यद्यपि हमारे पास संसाधन की कमी होने के बावजूद हमारी इच्छा शक्ति बुलन्द है जो किसी भी परिस्थिति का डटकर सामना करने में सदैव सक्षम साबित हुई है। यह निर्जीव वायरस अकेले शक्तिहीन है, इसे अपना भय पैदा करने के लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। भारत सरकार का इसी बात पर फोकस है इसलिए पहले 21 दिन और अब 18 दिन आगे का लाॅकडाउन लागूकर इसकी बढ़ती चेन को तोड़ने में लगी हुई है, जो कारगर प्रयासों में से एक है। देश के बहादुर योद्धा दिन-रात अपने जीवन की परवाह किये बिना देश रक्षा में डटे हुए हैं, देर-सवेर ही सही इस वायरस की वैक्सीन भी बनकर तैयार हो जाएगी, तबतक इसे रोकने के लिए हमें मिलकर प्रयास करना होगा। हर स्तर पर इस संकट की घड़ी में अपने आप को घरों में सीमित करके, लोगों से दूरी बनाकर, जरूरत न हो तो बाहर न जाकर, अपने आसपास लोगों की परेशानियों को न बढ़ाकर, लोगों को संबल देने की जरूरत है, यही हमारा राजधर्म है।

आज का दौर टेक्नोलाॅजी और साइंस का है, इसमें बड़े-बड़े देशों ने महारत हासिल की है लेकिन अभी इस महामारी कोविड-19 को रोक पाने की दिशा में खासी मसक्कत करनी बाकी है। आधुनिक दौर की इस महामारी से पार पाने के लिए वैज्ञानिक टैक्नोलाॅजी और विज्ञान के साथ-साथ इतिहास के 100 साल पुराने पन्नों को भी पलटने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि 100 वर्ष पहले की महामारी का इलाज किस तरह इस आधुनिक बीमारी से लड़ने में सार्थक तोडॉ साबित हो सके। दुनियाभर के विकासशील देश मौत और डर के साये के बीच बी.सी.जी. वैक्सीन को एक उम्मीद के रूप में देख रहे हैं, जो यकीनन संकट की इस घड़ी में इन देशों के लिए सुरक्षा कवच का काम कर सकती है।

(लेखिका एडवोकेट हैं।)

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