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कारपोरेट जगत के बड़े-बड़े धन्नासेठों पर सरकार का 11 लाख 50 हजार करोड़ का टैक्स बकाया

नई दिल्ली (ईएमएस)। सरकार भारत में अमीरों के के लिए अलग नियम-कानूनों का प्रावधान करती है। वही मध्यम वर्ग और गरीबों के लिए अलग तरीके के कानून बनाती हैं। कानून एवं नियमों का पालन कराने में सरकारी तंत्र भेदभाव करता है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि देश के बड़े-बड़े धन्नासेठों और कारपोरेट कंपनियों पर 11 लाख 50 हजार करोड़ का टैक्स बकाया है। भारत सरकार के सालाना बजट की यह 47 फ़ीसदी राशि है।

उल्लेखनीय है कि इन्हीं धन्नासेठों को बैंकों ने लाखों करोड़ों रुपए के ऋण दिए हैं। जिनकी वसूली नहीं हो पा रही है। बैंकिंग सूत्रों के अनुसार लगभग 7 लाख करोड रुपए का ऋण कारपेट कंपनियों पर बकाया है। सरकार इनके नाम भी उजागर नहीं करती है।
वित्त मंत्रालय की स्थाई समिति की ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस समय 11.50 लाख करोड रुपए का टैक्स बकाया है। जो भारत की अर्थव्यवस्था का 47 फ़ीसदी हिस्सा होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुल बकाया कर में 9 लाख 30741करोड़ रुपया प्रत्यक्ष कर के रूप में तथा 2 लाख 28530 करोड़ रुपया अप्रत्यक्ष कर के मद में बकाया है।

वित्त मंत्रालय की समिति के अनुसार इतनी बड़ी कर राशि सरकार वसूल कर पाने में पूर्णता अक्षम है। डॉ एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस समिति ने सरकार को सलाह दी है कि वह कर वसूली के लिए ठोस कार्यवाही करे। पुराने बकाया की वसूली करने के लिए निर्धारित समय पर वसूली के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तय करें। समिति ने न्यायाधिकरणों और अदालतों में इससे जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई कर फैसला कराने की सलाह दी है। उल्लेखनीय है कि वित्त स्थाई समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं।

स्थाई समिति के सामने अधिकारियों ने प्रत्यक्ष करों की वसूली नहीं होने के कई कारण गिनाए इसमें सबसे बड़ा कारण करदाता का पता नहीं लग पाना वसूली के लिए कोई संपत्ति का नहीं होना अदालत और अपीलीय न्यायाधिकरण में वर्षों से प्रकरण लंबित होने और कंपनी की परिसमापक प्रक्रिया के कारण कर की वसूल नहीं हो पाना रहा है। समिति का मानना था सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और बड़े करदाताओं पर समय पर कार्यवाही नहीं करने से सरकार की इतनी बड़ी कर राशि बकाया है।

वित्त समिति ने मौजूदा वित्त वर्ष में 1.26 लाख करोड रुपए के रिफंड पर भी अपनी हैरानी जताई है समिति ने अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाया है कि विभाग अपने राजस्व लक्ष्यों को पूरा करने के लिए करदाताओं से अधिशेष और अग्रिम कर ले रहा है जो बाद में उसे रिफंड करना पड़ता है यदि ऐसा है तो इस मामले में भी सुधार की आवश्यकता जताई है।

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