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जीरो बजट खेती से रूकेगा कृषि से पलायन: सुभाष पालेकर

लखनऊ, 19 दिसम्बर (हि.स.)। जीरो बजट प्राकृतिक खेती का तरीका अपनाने से कृषि से पलायन रूकेगा। भारत में हरित क्रान्ति के नाम पर अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों, हानिकारक कीटनाशकों, हाइब्रिड बीजों एवं अत्यधिक भूजल उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में निरन्तर कमी आई है। कृषि की बढ़ती लागत व सरकार की कृषि के प्रति उदासीन नीति के कारण किसान खेती छोड़ रहे हैं या आत्महत्या तक करने पर मजबूर हो रहे हैं। 

यह बातें जीरो बजट प्राकृतिक खेती के जन्मदाता पद्मश्री सुभाष पालेकर ने मंगलवार को चोपड़ अस्पताल परिसर के निकट लोक भारती कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए लोक भारती द्वारा 20 से 25 दिसम्बर तक बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में आवासीय छह दिवसीय प्रगतिशील प्रयोगधर्मी किसानों का प्रशिक्षण शिविर लगाया जायेगा। इसमें भारत समेत कई देशों के किसान हिस्सा लेंगे। प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन 20 दिसम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। 

शिविर में किसानों को भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने, फसल सुरक्षा, पानी बचत के उपाय का प्रशिक्षण दिया जायेगा। इसके अलावा किसानों को फसल के विपणन के लिए भी प्रशिक्षित किया जायेगा। 

सुभाष पालेकर ने बताया कि शून्य लागत प्राकृतिक खेती के लिए किसान को बाजार से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ेगा। ऐसी स्वावलम्बी खेती से किसान सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक रूप से शक्तिशाली हो सकता है। इस खेती पर बीमारियों का प्रकोप भी कम होता है। कीट नियंत्रकों की जरूरत ही नहीं पड़ती है क्योंकि कीट आते ही नहीं। प्राकृतिक कृषि में देशी बीज का ही प्रयोग किया जाता है। हाइब्रिड बीज से अच्छी पैदावार नहीं होती है। 

सुभाष पालेकर ने बताया कि इस खेती में किसान को देशी गाय रखना जरूरी होता है। देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं। देशी गाय के गोबर में गुड़ एवं अन्य पदार्थ डालकर जब खेत में डाला जाता है तो करोड़ों सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी में उपलब्ध तत्वों से पौधों के भोजन का निर्माण करते हैं। इस पद्धति से खेती करने पर देशी केंचुआ अपनी सुसुप्ता अवस्था से बाहर निकलकर मिट्टी व बालू खाता हुआ 15 फिट की गहराई तक नीचे जाता है। नीचे से पोषक तत्वों को बाहर लाता है और पौधों की जड़ के पास अपने मल को छोड़ता है जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्वों का भण्डार होता है। केंचुआ जिस छेद से नीचे जाता है उस छेद से ऊपर कभी नहीं आता है। भूमि में दिन रात लाखों छेद करके भूमि को मुलायम बनाता है।

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