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फिल्म समीक्षा- मिर्जा जूलियट

स्टार कास्ट : पिया बाजपेयी

निर्देशक राजेश राम सिंह

निर्देशक राजेश राम सिंह की फिल्म मिर्जा जूलियट उन मसालों में बनी एक और फिल्म है, जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेताओं की सियासत के साथ एक लव स्टोरी बनाई जाती है। इस फिल्म में नएपन के नाम पर कुछ नहीं है। हिंदू लड़की-मुस्लिम लड़के की लव स्टोरी पर बनी ये फिल्म संवेदनाओं के नाम पर दर्शकों के साथ कहीं भी नहीं जुड़ पाती।

इस फिल्म की जूलियट, यानी जूली शुक्ला (पिया बाजपेयी) इलाहबाद के एक सियासी परिवार की बेटी हैं। उनके तीनों भाई दंबगई और सियासत के माहिर हैं। जूली शुक्ला की शादी एक और सियासी परिवार में तय हो चुकी है, जिसका एक सदस्य हिंदु-मुस्लिम तनाव में मारा जाता है। जूली शुक्ला की मुलाकात जब अपने बचपन के दोस्त मिर्जा से होती है, तो ये दोस्ती प्यार में बदलती चली जाती है। जूली के तीनों भाई भी अपनी बहन के खिलाफ हो जाते हैं। आखिर में प्यार के नाम पर जूली और मिर्जा अपनी जान दे देते हैं।

निर्देशक राजेश राम सिंह ने इस फिल्म में वे सारे मसाले ठूंस दिए, जो उनको लगता है कि इस तरह की फिल्म के लिए जरूरी होते हैं। इनमें हिंदू-मुस्लिम तनाव, हिंदू-मुस्लिम लव स्टोरी, भाई बहन का प्यार और एक बिंदास लड़की, जो सेक्स की बातें करने में कोई संकोच नहीं करती के बारे में बताया गया है । फिल्म की कमजोरी ये है कि ये सारे मसाले कहीं तालमेल नहीं बैठा पाते। राजेश राम सिंह का निर्देशन कमजोर रहा है। वे पटकथा पर कोई नियंत्रण नहीं रख पाए। जूली के रोल में पिया बाजपेयी बेहद ओवर हैं और कहीं भी आकर्षित नहीं कर पातीं। मिर्जा के रोल में दर्शन कुमार का चयन पूरी तरह से गलत साबित हुआ। वे इस रोल में कहीं फिट नहीं हुए। सहायक भूमिकाओं में सदानंद किरकिरे (जो गीतकार भी है) से लेकर चंदन सान्याल और प्रियांशु चटर्जी तक कोई नहीं जमा। तकनीकी रुप से भी फिल्म कमजोर है। एडीटिंग बेहद खराब है। लंबे-लंबे सीन, बेतुके डायलॉग और प्रोडक्शन वेल्यू तक कमजोर हैं। गीत-संगीत में भी फिल्म शून्य है।

फिल्म की लोकेशन और कैमरावर्क अच्छे हैं। स्थानीय फ्लेवर होने की वजह से फिल्म पूर्वी यूपी की बेल्ट में थोड़ी चल सकती है, बाकी जगहों पर इस फिल्म के लिए कोई संभावना नहीं बचती।

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