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स्वामी असीमानंद की आदिवासियों के बीच थी गहरी पैठ

नई दिल्ली (ईएमएस)। मक्का मस्जिद धमाके में अदालत से बरी हुए धर्मगुरु स्वामी असीमानंद वह व्यक्ति हैं, जिनके बारे में संघ परिवार के लोग खुलकर बात नहीं करना चाहते। खासतौर पर उन दिनों के बारे में जब असीमानंद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठनों के करीब थे। उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों को मिशनरी के प्रभाव से बाहर निकालने का काम किया।

संघ से जुड़े कई ऐसे लोग हैं, जो असीमानंद को हिंदू राष्ट्र के प्रबल समर्थक और कभी समझौता नहीं करने वाले व्यक्ति के रूप में याद करते हैं। गुजरात के आदिवासी इलाकों में ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण अभियान’ को रोकने के लिए उन्होंने भारी प्रयास किए थे। संघ के लोग स्वीकार करते हैं कि यह बेहद कठिन काम था, जिसे असीमानंद ने 1990 के दशक में अपने हाथ में लिया था। वह आदिवासियों के बीच इस तरह घुल-मिल जाते थे कि उनकी ही बोली में बात करते थे, उनके बीच नाचते-गाते थे। हिंदू पर्वों का भव्य आयोजन आदिवासियों के बीच वह करवाते थे। हिंदू संगठनों से जुड़े रहे असीमानंद ने पश्चिम बंगाल, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम में काम किया, लेकिन गुजरात, झारखंड और अंडमान द्वीप के सुदूर इलाकों में असीमानंद ने प्रमुख रूप से काम किया और यहीं से उनकी पहचान बनी।

रामकृष्ण मिशन से प्रभावित बंगाली परिवार में जन्मे असीमानंद ने शुरुआत से ही आदिवासियों के बीच काम किया। संघ के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि एक गुरु से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया था और फिर आदिवासियों के बीच काम करने लगे। गुजरात में असीमानंद के साथ काम कर चुके संघ के एक सीनियर लीडर ने बताया वह शुरुआत से ही इस बात को लेकर स्पष्ट थे कि उन्हें आदिवासियों के बीच काम करना है। उन्होंने पश्चिम बंगाल से काम की शुरुआत की, जिसके बाद संघ ने उन्हें 1970 के दशक में अंडमान भेजा, जहां उस दौर में संघ खुद को स्थापित करने के लिए प्रयासरत था। संघ नेता ने कहा असीमानंद का रामकृष्ण मिशन से मोहभंग हो गया था, लेकिन उनके स्वामी विवेकानंद और हिंदुओं के प्रति उनके योगदान को लेकर उनके मन में गहरी श्रद्धा थी।

उन्होंने कहा वह साफ कहते थे अधिक हिंदुओं को अपने साथ जोड़ो, लेकिन यह ध्यान रहे कि कोई भी हिंदू छोड़कर न जाए। वह कहते थे यदि एक भी हिंदू की आस्था डिगती है तो वह धर्म के लिए बड़ा खतरा है। असीमानंद को 1990 के दशक के आखिरी में गुजरात के आदिवासी बहुल डांग जिले में भेजा गया था। यहा उन्होंने खासतौर पर ईसाई मिशनरियों की ओर से मतांतरण पर नजर रखी और उसे रोकने का प्रयास किया। यही नहीं जहां भी उन्हें संभावना दिखी, वहां उन्होंने ईसाई बने हिंदुओं को वापस हिंदुत्व से जोड़ने का प्रयास किया। वीएचपी के एक सीनियर लीडर ने कहा आदिवासी समाज के जीवन स्तर को सुधारने के लिए संघ हर साल अपने स्वयंसेवकों की आहुति देता है। उन्होंने कहा स्वामीजी दो साल से ज्यादा वक्त डांग जिले में रहे और बहुत से लोगों को मिशनरियों के प्रभाव से निकालने का प्रयास किया। इनमें से कुछ परिवार 1970 के दशक में मतांतरित हुए थे। इसलिए उन्हें हिंदू धर्म में वापस लाना या फिर उनके बच्चों की घर वापसी कराना आसान था।

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